Monday, May 31, 2010

देश से दूर ...


आज कुछ वृद्ध लोंगों को बतियाते देखा
देश से दूर केवल देश की बात करते देखा
अंग्रेजी में देसी लहजे का स्वाद चखते  देखा
और फिर अचानक देसी भाषा में चुटियाते देखा
कभी दर्द को उभरते देखा
तो कभी बचपन  को याद करते देखा
हर चुटकी में अपनो को दूर होते देखा
बस पुराने लम्हों का अहसास होते देखा
और फिर अचानक से अपने आप को देखा
कल मुझे भी ऐसा होते ही देखा

क्रोध


मैंने मसला है फूलों को
आशा के झरनों और नीव के पत्थरों को
सपनों की श्रंखला और संजीदा भावनाओं को
जब जब डांटा है बच्चों को
जब जब खिजाया है उनको
कैसे भूल सकता हूँ उन लम्हों को
मेरे चलाये गए उन बेदर्द वाणों को
आज जब कोसों दूर अध्ययन करता हूँ उस तामस को
आंसूओं को रोक नहीं पता बहने को
दिल को रोक नहीं पाता कोसने को
चिंतन क्यूं नहीं समझाता मुझको
क्रोध अँधा कर देता है सबको

मेरी आवाज

मैं कहाँ पर हूँ ?

घूम घूम कर मैंने अपना कर दिया हाल बेहाल
समय हो गया जैसे मेरे लिए बेताल

यहाँ पर देखें ...

Wednesday, May 26, 2010

समीर चालीसा

जय समीर हम मिलजुल गायें
देखो जिधर उन्हें ही पायें ***हर ब्लॉग पर
अन्तर्यामी ये कहलायें
हर ब्लॉगर के ब्लॉग पे जायें
जय समीर हम मिलजुल गायें ...


उड़न तस्तरी पर बैठाये
अपने ब्लॉग से नयी नयी ये सैर करायें
मस्त मौला से ये कहलायें
खूब मौज ये हमें करायें
जय समीर हम मिलजुल गायें


बज्ज़ पर भी ये बहुत बजियायें
टिप्पणियों की लाइन लगायें
ब्लॉग जगत में ऐसे छाये
अच्छे अच्छे भी गरियायें
जय समीर हम मिलजुल गायें


मेरी आवाज
समीर "उड़न तस्तरी"

Tuesday, May 25, 2010

गर्मी की तपन

गर्मी से ऐसे हुए हम सभी बेहाल
पसीने को पौंछ पौंछ गीला हुआ रुमाल
कूलर की भौं भौं से सर हुआ हलाल
नौता खाने जा नहीं पाते अब तो चुन्नीलाल
पानी की किल्लत से हर कोई हुआ हलाल
नहाने से बच्चों को अब कुछ नहीं मलाल
ठंडक को तरसें अब तो हर पक्षी डाल डाल

मेरी आवाज

Monday, May 24, 2010

संगीत

संगीत की धुन  ऐसी मधुर
नहीं चाहिए अब कोई विदुर
भाषा भी देखो हो गयी निगुण
मन को मोह लें  इसके ताल और सुर
इसको रचे कोई प्राणी चतुर
इसमें भरा है आनंद प्रचुर


मेरी आवाज

Saturday, May 22, 2010

मंगलौर दुर्घटना के मृतकों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली !!

Air India के विमान Boeing 737-800 की दुर्घटना में असमय मौत का शिकार हुए सभी यात्रियों को "मेरी आवाज" और कविता संग्रह की तरफ से श्रद्धांजली !!

ईश्वर इनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !!

Friday, May 21, 2010

नकली गुरुदेव का महिमामंडन

हो जाते हैं अपनी महिमा में शुरू
आलीशान महलों में रहते ये गुरु
रोज रोज बदलें वाहन ये गुरु
कहते है में ना कभी मरूं
नश्वर हो जाते है खुद ही ये गुरु
फूलों पर चलते हैं ये गुरु
दूसरों को हर मर्ज की दवा देते ये हुजुर
खुद बीमार हों तो डाक्टर के पास जाते गुरु
भाई इन्सान ही होता है गुरु
फिर क्यों समझे खुदा से आगे खुद को गुरु

एक लेख मेरे अन्य ब्लॉग मेरी आवाज पर इसी विषय पर पढ़ा जा सकता है. धन्यवाद !!

Thursday, May 20, 2010

भोपाल गैस त्रासदी की याद में

भोपाल गैस त्रासदी की याद में एक लेख लिखा था मैंने कल, उसी में लिखे मन के कुछ काव्य भाव

मेरी आँखे नम हैं, दिल में अजीब सा दर्द है
और अंतर्द्वंद कई दिन और सालों से ...
उंगलिया लिखती ही जायेंगी
फिर भी उनका दर्द बयां नहीं कर पाएंगी
कैसे दर्द को झेला होगा अनगिनत को गिनते गिनते
आंसू भी कम पड़ गए होंगे शब्दों की तो बात क्या
कहीं पालनहार न रहा तो कहीं बुझ गयी मासूम किलकारी
कोई जिन्दा तो रहा पर मरने से भी बदतर रहा
गरीबी में ही क्यों होता आटा गीला
शायद भगवान् से भी गलती हो गयी होगी

Tuesday, May 18, 2010

सुबह


कल की सुबह फिर एक नयी सुबह
सूरज भी उगेगा फिर से कल की सुबह
पक्षी भी चहकेंगे फिर से कल की सुबह
मेरी आशा बल देगी कर्म का फिर से कल की सुबह
हम होंगे कामयाब फिर से कल की सुबह ....

 
PS : इससे संबधित एक लेख मेरे ब्लॉग मेरी आवाज पर पढ़ा जा सकता है.

अंतर्द्वंद ...

ज्वार भाटे आते रहते हैं मेरे तट पर
विचार उद्वेलित होते रहते है मेरे मन पर
लोग आते रहते है मेरे ब्लॉग पर
जैसे चिड़ियों की चहचहाहट हो खेत पर
रहंट की कलकल ध्वनि हो कुएं पर
घंठो की करतल हो जैसे बाग़ के मंदिर पर
भजनों की धुन जैसे माता के द्वार पर


PS : इससे संबधित एक लेख अंतर्द्वंद - कुछ चीजें पसंद नहीं आ रहीं ?  मेरे ब्लॉग मेरी आवाज  पर पढ़ा  जा सकता है.  

Monday, May 17, 2010

सागर किनारे ....


सामने विशाल झील
पीछे है एक वृहत शहर
कितने भिन्न हैं दोनों किनारे
एक मस्ती का आभास कराये तो दूजा दे मन का आनंद
आसमान से झील को मिलते देखा
जैसे विचारो को गति पकड़ते देखा
रेत कितना आनंद देता
शीशा बन फिर दर्द भी देता
बच्चे सपनों के घरोंदे बनाते
आकृति मिटाते , बनाते, खिलखिलाते
गीले होकर मन ही मन सयाते
हम भी एक दो छींटे सहलाते
और विचारों की सौंधी हवा में खो जाते
जैसे सुबह की ओंस की बूंदे मुंझे जगा रही हो
जैसे जन्नत या सपनों की मनोहारी तरंगे हो
गद्य और पद्य लिखते, मिटाते और सोचते
अपनी प्राणप्रिये को गले लगाते
जिनको घर पर देख स्वभावबस गुसियाते
रेत की गर्मी और टहलते दौड़ते लोग
नावों पर सवार उन्मुक्त मस्त परवाने लोग
हर तरफ आनंद और अंतहीन मस्ती में डूबे लोग
तरो ताजा मेरे मन को करते मेरे मन के संतुष्ट भाव

PS : ये कविता मेरे ब्लॉग मेरी आवाज पर  एक पोस्ट शिकागो की एक सैर मेरे साथ - एक दिन में ... का हिस्सा है.

Tuesday, May 4, 2010

सखा

मेरे सखा बात तो करो
दर्दे दिल अपना बयाँ करो
रूखे रूखे से ना रहा करो
दर्द मेरा भी समझा करो

मेरे पास भी कभी रहा करो  
कभी समंदर किनारे चला करो
मेरे साथ तुम भी सपने बुना करो

ओस कि बूंदे निहारा करो
भाव मेरे समझा करो
आंसुओं कि क़द्र जाना  करो
इन्हें ऐसे ही ना बहाया करो