पिज्जा,
पास्ता,
पनीर और पिश्तेदार हलुआ
जो था बारी बारी सब कुछ परोसा गया
कान्हा,
नटखट,
लाडला और प्यारा
जो भी था हर मनोहारी शब्द बोला गया
पर निवाला उसके मुँह में ना गया
खाने को देखकर मुँह बनाता रहा
माँ से रहा न गया
एक एक कौर विनती कर सह्रदयता से
माँ के द्वारा जबरदस्ती खिलाया गया
रह रह कर मुझे
अधनंगा खड़ा
मेरे गाँव का बच्चा याद आता गया
थाली में जो डाला
उसे आनन्दित हो
दोनों हाथो से
पूरी मस्ती से
स्वाद ले ले कर
कुछ ही देर में चट कर गया
हर कौर के बाद
संतृप्ति की हलकी हलकी
सांस भरता गया
जैसे भोजन की महत्ता
श्रम की तपन का
अहसास ताजा कर गया !!
6 comments:
भाव बढ़िया है..
अंतिम पंक्ति में देखो: ताज = ताजा..
सारगर्भित रचना बधाई
समीर जी - सही कर दिया -- बहुत बहुत शुक्रिया :)
संवेदना की पराकाष्ठा उड़ेल दी इन पंक्तियों में। बहुत अच्छा लगा।
बेहतरीन....
wah .ati sunder.
Post a Comment