Friday, October 29, 2010

जीवन

ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे

कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये

अग्नि क्रोध की कभी उठे

तो कभी समुन्दर उत्सव के

कभी मोह की पाँश का झंझट

कभी अर्थ संचय का चिंतन

कभी बिछडने का गम घेरे

कभी मिलन की आश सँवारे

दम्भ घोर अन्धकार घुमाये

गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये

कभी अतृप्ति अकेलेपन की

कभी विक्षोह परम मित्रों का

इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी

जीवन के मेले बहुरंगी

 

मेरी आवाज

6 comments:

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छा !

संजय भास्‍कर said...

.आस ही तो जीने का विश्वास और सहारा देती है...

Arvind Mishra said...

जी
कभी खुशी कभी गम
कभी फूल कभी बम
कभी वे तो कभी हम

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन के रेले बहुरंगी,
उस पर बरसे तान तरंगी।

संगीतकार को पकड़ा जाये, सुन्दर गीत तैयार हो जायेगा।

VIJAY KUMAR VERMA said...

bahut hee sundar prstuti..
shubh deepawalee

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

Sundar Rachna !
Aapko Diwali ki hardik shubhkamnayen!