कुछ यादें ऐसी होती हैं
जो भूले ना जाती हैं
इनका स्मरण
खुसी के आँसुओं
से मुझे
ओस की बूंदों की भांति
प्रुफुल्लित कर देता है
मानस पर अंकित ये यादें
मंद मंद बयार की भाँती
मुझे सपनों में ले जाती हैं
अपनी गोद में लिटा कर
माँ के आँचल सा
आभास दे जाती हैं
मैं सोचता सा रहता हूँ
विवश करता हूँ
खुद को
उन यादों में फिर से जाने को
उन्मुक्त है मन
फिर से
वही राग गाने को
जो अब बसता है
सिर्फ यादों के आसमाँ में
मैं मस्त मौला
फिक्र से दूर
अरमानो के समुन्दर में
डुबकी लगा लगा कर
विचारों की उद्वेलना से दूर
तटों की खोज से बेपरख
अपनों के वटवृक्ष जैसी छाया तले
दो वक्त की रोटी
सुकून से खा रहा था
महत्वाकांक्षा की आंधी ने
विचारों को ऐसा उद्वेलित किया
मन ही मन सपनों के जाल बुन
पता नहीं कैसी उधड़बुन
के चक्रवातों में फँसा
झूठे दिलासे देता रहा
मन को बहलाने के तरीके ढूंढता फिरता
ऐसे चक्रव्यूह में जा घुसा
जहाँ सिर्फ यादें ही मनोहारी हैं ….
तर्कों के तीर
आवेशों के वेग
वर्तमान को जीने की देते हैं सीख
यादों का इन्द्रधनुषी रूप
शीतल करता
फिर से वहीं बुलाता
जहाँ से शुरू हुई थी ये दौड
7 comments:
राम त्यागी जी, बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है बधाई।
बड़ी सुन्दर कविता। कई बार ऐसा लगता है कि जहाँ से प्रारम्भ किया था, जीवन वहीं पर ही ले जायें।
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
अभी जवान हो,बच्चे भी छोटे हैं.कम लो.भावुकता से जीवन नही बीतता.रिश्तों को निभाने के लिए,कर्त्तव्यों को पूरा करने के लिए 'पैसा' चाहिए और सुखी जीवन जीने के लिए भी.अभाव कई दुखों का कारन बन जाता है ये कड़वा सच है.इसलिए मन को विचलित ना करो.यादों को सहेजे रखो,उन्हें अपनी ताकत बना लो. तनाव,यादों सबको शब्दों में ढाल कर पोस्ट कर दो.बस...खुश रहो.तुम्हारी कविता में तुम्हे,तुम्हारे अंतर्मन को पढती हूँ हमेशा,जो अभि भी बच्चों-सा है.ठुनकता है और रह रह कर वो खिलौना चाहता है जो उसके पास नही,उससे बहुत दूर है.है ना? प्यार
आप सभी लोगों का प्यार मिला बस मन खिल सा गया है ! इंदु बुआ जी के आत्मीय कमेन्ट ने उत्साह को एक नयी स्फूर्ति दी हैं !
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