बहुत पहले लिखी गयी कविता के कुछ अंश आज लिखने का मन है -
इस्तकबाल करूँ में उसका
जो चिराग आंधी में झुलसा
फिर भी वह दमका ही दमका !
मैं यहाँ पर अपनी कविताओ का परिचय आपके साथ कराने की कोशिश कर रहा हूँ, आशा करता हूँ की आपको मेरी रचनायें पसंद आयेंगी |
1 comment:
दमदार पंक्तियाँ।
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