रेल रेल डब्बे डब्बे वो चाय बेचता जाये
अठन्नी और चबन्नी से वो मुस्काता जाये !!
घर पर बैठी बूढी माँ इसी आश में जिये
काश कि बस इतना ले आये
तनिक पेट भर सो जाये !!
मेरी आवाज
मैं यहाँ पर अपनी कविताओ का परिचय आपके साथ कराने की कोशिश कर रहा हूँ, आशा करता हूँ की आपको मेरी रचनायें पसंद आयेंगी |
4 comments:
sunadar........
जीविकार्थ जूझते जीवन।
..सुंदर।
..आगे और लिखिए..
अच्छा लगा यह शब्द चित्र
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