Thursday, April 1, 2010

असमंजस


लिखता हूँ , मिटाता हूँ , सोचता सा रहता हूँ
प्रस्तावना लिखने का मन बना न पाता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

शब्दों के असीमित भंडार से शब्द जुटा न पाता हूँ
अनगिनत मुद्दों से मनचाहा विषय खोज न पाता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

बहुत कुछ सीखकर भी अन्जान सा हूँ
धूप में छांव और जागते में सोने की राह देखता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !

यह, वह, यहाँ, वहां, मन, दिल, डील और नो डील
इसी उहापोह का तार्किक विश्लेषण करता रहता हूँ
न जाने किस असमंजस में हूँ मैं !


~ राम त्यागी

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