Tuesday, June 9, 2009

असली गहना


उसका सिर हिलाना
और मुस्कराना
फिर धीरे धीरे मेरे पास आना
शरारतें करना
मुंह में हर चीज को देना
मेरे पास जाने से उसका भागना
ठुमक ठुमक घुटने टेकना
गीतों पर मस्ताना
उसका रोना और चिल्लाना
फिर ठहक ठहक कर हँसना
हर चीज के लिए मचलना
मौका मिलते ही दूसरो के बाल खींचना
कुछ भी खा लेना
पापा - दादा कहना
तमाम नखरे करना
और क्या क्या कलम से लिखना
मेरा बेटा है असली गहना


Sunday, May 3, 2009

मन

आकाश इतना विशाल है, हवा इतनी तीव्र है, मन मेरा इतना चंचल है।
कभी मोह के पांसों में तो कभी प्यार के झांसों में उलझता सा रहता है।
कभी स्वाद के चटखारों में तो कभी स्वप्न के जाल में घुमड़ता रहता है।
मन माने नही मेरे मंत्र को , बस मस्त होकर विचरण करता रहता है।
मेरा मन करता है मन की ना मानू पर ये मन मेरी बात सुनता कहाँ है।

Thursday, January 22, 2009

याद देश की आती है

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
छोडा अपना देश बहुत सालो पहले
याद तो फिर भी आये मिटटी माँ मेरी
नहर गाँव की कैसे भूलें , कैसे भूलें खेतो को
मास्टर जी ने मुर्गा बनाकर खूब सिखाया गणित हमें
याद आते है बैल हमारे जिनकी जोड़ी शानदार थी
याद आते है सरसों और गेंहू के हर भरे खेत खलिहान
नही भूल सकते सब यादें जो हमारी पहचान है
झंडा बंधन हो या फिर बारातो की मस्ती हो
सरकारी विद्यालय की मस्ती हो या फिर कॉलेज की लड़किया
नही भूल सकते वो यादें , जो मेरे जेहन में है।

Monday, January 19, 2009

इस्तकबाल करूँ में उसका
जो चिराग आँधी में झुलसा
फिर भी वह दमका ही दमका

Sunday, January 18, 2009

जीवन

रुके सन्घर्ष कभी ना, हो यही कहानी मेरे जीवन की
बहते जाऊं नदिया की तरह, यही अभिलाशा मेरे मन की
पर्वत की तरह हो द्रढ निश्चय, मिटा दे खाई कथनी करनी की
रुकूं ना में आगे बढना, देख पल भर के गम या खुसी
बढता ही जाऊं में हर पल, खोजता मन्जिल नयी नयी
जब तक ना छुयेगा पानी को, क्या तू तैरना सीखेगा
फिर कैसे केवल बातो से , जीवन की नाव चलायेगा
मुस्किल रोकेंगी सफर, मिलेंगे उपहारों के फूल
कदम राही के रुके नहीं, प्रक्रति की सीख यही मत भूल
बटोही सोने से पहले, सोच ले मन्जिल कितनी दूर
समय को खोने से पहले, याद रख नही आये ये लौट
रुके सन्घर्ष कभी ना ....-

भारत की बीमारी

बहुत दुख देती है मेरे भारत की बीमारी मुझे
नाटक सा लगता है आज का ये विकास जहाँ सब कुछ है पर कुछ भी नहीं
कोई नही सुनता आज भी गरीब की, कोई नही देखता भूखे किसान को
न्याय के गलियारे हो या फिर सत्ता की बिसातें, हर जगह बिकती है ईमानदारी
आज भी पिसता है लड़की का बाप दहेज की चिंता में, बेरोजगार चुप है मगर म्रत है भत्ते की आड़ में सच्चाई को दबा रखा है सरकार के सम्मानो ने जो नही लांघ पाते मेट्रो की दीवारें
विधायिका पर दोगलो का राज है, तो अर्थव्यवस्था पर चुनिंदा लोगो का ही हक़ है
कैसे में कह सकता हू आज मेरा भारत महान है जहा पर सिर्फ राजनीतिक गुंडो का राज है
कहने को तो हमने खोल रखे है निशुल्क अस्पताल देनी पड़ती है शुल्क खून बेचकर वहाँ जिंदगी के उन रखवालो को जो पता नही कब बेच दे आपकी किडनी या शरीर को
क्यूँकि मेरे भारत में सजा अब गुडो को कहा कम पैसे वाले को मिलती है
अधिवक्ता पैसे लेकर कैसा भी केस जिता सकता है, समाचार वालो को ये सब रातो रात अमीर बना सकता है
हर कोई पैसे के लिए मरने मारने और संस्क्रती बेचने तैयार है
क्यूँ की ये पैसा ही आज के भारत की ताकत बन गया है
ये मेरे हिंनदुस्तां को कैसा रोग हो गया है जहा हर कोई सिद्धांतो को कचरे में फेक रहा है
गांधीजी की तो सिर्फ मूर्ति लगाते है, राम के अस्तित्वा के लिए टीके लिखे जाते है
सब कुछ मिटाने के लिए तैयार हो जाते है , अगर डॉलर वाली कंपनी वहाँ जमीन लेती है
मायावती के लिए सुरक्षा एसरायल से आती है पर यू पी के गरीब की लड़की विद्यालय 45 कि. मी. चलकर जाती है
सोनिया वायु मार्ग से गावों का भ्रमण करती है, उन्ही गांवो में एक 100 रुपये के लिए किसान आत्महत्या कार लेता है
ये कैसी राजनीति है जहाँ रोजगार पाते ही आप करोरो में बात करने लगते हो
बी जे पी अपने सम्मेलन के लिए लाखो रुपये साजो सजा में बहा देती है और पास वाले गावन् में सूखे की मार है
ये बीमारी नही तो क्या है जहाँ दिखता तो सब सुंदर है पर अंदर से सब खोखला है
स्वस्थ शरीर पर ही सुंदर कपड़े सोभा देते है, नही तो ये मजाक सा लगते है
गांवो के विकास से ही भारत सजता है नही तो ये बीमार सा और नंगा सा लगता है

नाद - a kavita on 26th Jan

देख सभी को इस मन में है अति उत्साह समाया
कविता को अभिव्यक्ति का मेने माध्यम है बनाया
नेसडाक में जब हमने तिरंगा था लहराया
उन्नति का अस्वमेघ घोङा भारत ने विश्व घुमाया
हमने दे दी ललकार विश्व को , अर्थशक्ति बनने की
पर क्या हमने इस उत्सव पर सोचा झोपङ पट्टी का
क्या हमने सोचा कब हर घर में बिजली होगी
कब हुम रोकेंगे रिश्वत को जो बीमारी से बढकर है
क्या हमने देखा जाति धर्म के बटवारे को
मैं तो यही कहूंगा सबसे इस गणतंत्रा दिवस पर
देते है कुछ समय देश को छूते हैं अनछूये सवाल
हम उनको भी आगे लायें जिन पर टिकी इमारत है
कन्गूरों की असली सोभा होती अछी नींव से है
नींव बनेगी सुद्रढ, जरूरत है कुछ करने की
चलो आज लें प्रन कुछ अपने अन्तर्मेन की बातों का
करें नाद उन्नति के सही मायनों का

बंद

जेहन मैं ऐसे सवाल हर पल आते रहते है
फिर भी हम इन्सान क्यों न रह पाते है
हर गली मैं ऐसे कई मूला और मुरारी मरते है
फिर भी ये बंद कैसे सफल होते है
हर तरफ सन्नाटा छाया रहता है
फिर भी राजनीती के दलाल व्यापार करते है
हर कोई सुनकर स्तब्ध रह जाता है
फिर भी ये बंद हर रोज होते है
जान और माल का नुकसान ये करते है
फिर भी ये बंद क्यों बंद नही होते है

क्या यही प्यार है

प्रेम के सागर में डूबे
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है

प्रेम के सागर में डूबे ..

मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत

प्रेम के सागर में डूबे ..

जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ

प्रेम के सागर में डूबे ..

सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..

होली

होली के इन भिन्न भिन्न रंगो का इन्द्रधनुष

मस्ती बन छाया हर तन पर

मन के उन्मुक्त तारो को जोड्ती होली की उमंग

भांग और गुलाल के मौसम ने फैलाया उल्लास

रंगो की टोलियां निकली गली गली

हर कोई भूला भेद, बहम, बैर की बातें

डूबा मस्ती, मिलन, मतवाले मस्त महोल में

फाल्गुन का ये महीना, होलिका का जलाता अहंकार

प्रक्रति और हमारी सन्स्क्रति का, अनूठा है सूत्रधार

चलो करें सैर रंगो के इस मेले की

चलो सुने कथा प्रहलाद, होलिका की

जला दो होली में अपने सारे गम और बुराई

दूसरे दिन करो रंग और भांग रूपी आनन्द की शुरुआत

यही तो हमें देती सीख इतिहास की ये मधुर स्म्रति

बढ़िया तो है सब

तपती हुई गर्मी में
झोला लेकर निकले
सायकिल में मारे पैडल जोर से
चिट्ठी घर घर देता डाकिया
सुई लगाता घर घर बीमार सा डाकधर
सरपंच अपनी अथाई पर बैठा मरोड़े मूछ
पर कोई नेता नही इनको रहा पूछ
पटवारी ने खाट के ऊपर बनाया अपना ऑफिस
मास्टर साहब ने टुइशन के बहाने घर को ही बनाया स्कूल
इंजिनियर ने दे दिया सारा काम ठेकेदार को
जनता की लगा दी बाट खा गए सारे पैसे को
रोड को कर दिया सकरा
तभी तो अब इनके घर में कटेगा बकरा
थानेदार साहब से परेशान है सुनार
रिश्वत लेते है ये बेसुमार

सरपंच की इज्जत !!

सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
सरकायलो खटिया और कुरसियाँ
पहले खेलो तांस और फिर सुलगायलो बीडी बोहरे
इतर लगाने वालो भी आयो है
क्या है मंजर पार्टी जैसो
सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
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बोले मूला, सरपंच साहब आप महान हो
मिटटी के तेल से ही लाखों निचोड़ने में माहिर हो
घर का नाम रोशन कर रहे हो
जब से जीते हो, लाखों बना रहे हो
~~~~~~~~~~~~~~~~~
बोले मुरारी सरपंच साहब आप तो खिलाड़ी हो
हमें उधार देने वाले भगवान् हो
अफसरों से सांठ गाँठ करना कोई आपसे सीखे
सरकार से पैसा एंठने में आपका कोई जबाब नहीं
हम तो भूखे है इसका हमें मलाल नहीं
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जलाओ और बीडी , पानी की बाल्टी भी ले आओ
सब बोले एक मत में आप ही गाँव के सच्चे सपूत हो
नेता बनने के सारे गुण रखते हो
पढ़े लिखे लोग क्या कर पायेंगे
आप से क्या मुकाबला कर पायेंगे
आपने गाँव का नाम रोशन किया है
सरकार के पैसे से अपने घर को मालामाल भी किया है
इस बार डाल दो पर्चा MLA के लिए
बहू को कर दो खड़ा सरपंची के लिए
सरपंच साहब बहुत खुश हुए
दो चार अकडन लेते हुए
मीटिंग को सफल बताते हुए
सरकार को चूना लगाने फिर चल दिए !!

नया नया मौसम

वृक्षों के पत्ते अपना रंग क्यूं बदल रहे है
शायद कोई परिवर्तन की बेला हो
या फिर ये कोई नई कला है इनकी
भगवा रंग की चादर जैसे ओड़ रहे हों
उड़ते सुनहरे रंग के ये पत्ते
ठंडी हवा की कोमल झपकी सी दे जाते है
पतझड़ बोलूँ या फाल
नये मौसम का है ये आगाज।