Monday, November 22, 2010

एक छोटी सी आश ...

बस हड्डियाँ ही दिखती हैं उस शरीर से  
बह रहा है नीर हर अंग से
सूरज भी जल रहा है तपन से 
प्याज भी निरीह है लपट के थपेड़ों से 
अनजान है कर्म और अर्थ के योग से
भाग्य भी असमर्थ है उसकी वेदना से
विक्षिप्त सा है अंतर्द्वंद की ज्वाला से
बस तन्मय हो !
तोड़ रहा है पत्थर दो वक्त की रोटी की आश से  !!

मेरी आवाज

Saturday, November 20, 2010

एक छोटी सी आश

 रेल रेल डब्बे डब्बे वो चाय बेचता जाये
अठन्नी और चबन्नी से वो मुस्काता जाये !!
घर पर बैठी बूढी माँ इसी आश में जिये
काश कि बस इतना ले आये
तनिक पेट भर सो जाये !!
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मेरी आवाज

Thursday, November 18, 2010

सलाम !!

बहुत पहले लिखी गयी कविता के कुछ अंश आज लिखने का मन है -

इस्तकबाल करूँ में उसका

जो चिराग आंधी में झुलसा

फिर भी वह दमका ही दमका !

 

मेरी आवाज

Saturday, November 13, 2010

हठीला

एक बालक

खिलौने की तलाश में

अपनी मंजिल तलाशता

खोजता, उतरता, चढ़ता

सूर्य, चंद्र और आकाश

को भी पाने की अभिलाषा रखता

हर राह को उकेरता

आशामय हो निहारता

उद्वेलित हो मग्न रहता

किड्स जब ज्येष्ठ को देखता

जीतने की आशा दोहराता

मंजिल पाने तक

प्रयासरत ही रहता

चींटी की भाँती

जीत कर ही विश्राम लेता !!! 

 

मेरी आवाज

Wednesday, November 10, 2010

अमेरिकन बाबू बेचे जात हैं …एक कविता

भैया भारत लगता तो बड़ा संपन्न है

पर विदेशी लोग खाए जात हैं

और अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

जनता बेचारी कान पकडे ही जात है

और कांग्रेस पार्टी राज करे ही जात है

देश को घोटालों से लूटे ही जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

देश की प्रतिभा पलायन करे ही जात है

और एक प्रतिभा राष्ट्रपति बने ही जात है

पर कुछ करे नहीं पात है

देश गरीब होये जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

विपक्ष खूब सीटें जीते जात है

पर संसद में ये भी सोये रहत है

बात बात पर धक्का मुक्की होती रहत है

वोट करते में खुद ही बिक जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है ….

 

मेरी आवाज

Friday, October 29, 2010

जीवन

ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे

कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये

अग्नि क्रोध की कभी उठे

तो कभी समुन्दर उत्सव के

कभी मोह की पाँश का झंझट

कभी अर्थ संचय का चिंतन

कभी बिछडने का गम घेरे

कभी मिलन की आश सँवारे

दम्भ घोर अन्धकार घुमाये

गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये

कभी अतृप्ति अकेलेपन की

कभी विक्षोह परम मित्रों का

इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी

जीवन के मेले बहुरंगी

 

मेरी आवाज

Monday, October 18, 2010

अकेला हूँ तो क्या हुआ

अकेला हूँ तो क्या हुआ
तलवार नहीं तो क्या हुआ
जश्ने बहारों का रेला मेरी तरफ नहीं तो क्या हुआ
आवाज तो गूंजेगी
मेरे सतत चिन्तन से
अनवरत सत्य से
दीपक जलाता रहूँगा
आँधी के रेले हैं तो क्या हुआ
मरुस्थल में प्यासा हूँ तो क्या हुआ
रेत पर चलता रहूँगा
लिखता रहूँगा !!

Saturday, August 7, 2010

इन्द्रधनुष

कल वाल स्ट्रीट पर इन्द्रधनुष देखा

अमीरों को तरह तरह के स्वांग करते देखा

किसी को अपने लाडले कुत्ते को घुमाते देखा

तो किसी को पास के जिम में वर्जिश करते देखा

इन सबसे दूर

रात के अँधेरे में,

एक गरीब वृद्ध को अपने लाडले के जीवन के लिए

खाली पड़ी हुई,

बिखरी हुई बोतलें बीनते भी देखा !!

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मेरी आवाज