मेरा उड़न खटोला जब बादलों से निकला
सुर्ख सपनों में मैं खुद को ढूँढने निकला
अचानक से खटोले ने खाए हिचकोले
हिला डुला कर सबके जैसे प्राण निकाले
अगले ही पल क्या क्या कर दे
तेरी लीला ईश्वर तू ही बता दे
मेरी आवाज
राजनीतिक निराशा
10 years ago
2 comments:
...बिलकुल सच है
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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