आओ कहीं नयी जगह, तो सब अजनबी से लगते है
दो चार दिन में फिर, कुछ अपने बन जाते है
ये दुनिया भावों पर टिकी है
भाषा अलग, जमीन अलग, फिर भी कुछ तो मेरे जैसा है
मेरी आवाज
गिरगिट के रंगो से भरा नीरस चुनाव
5 years ago
मैं यहाँ पर अपनी कविताओ का परिचय आपके साथ कराने की कोशिश कर रहा हूँ, आशा करता हूँ की आपको मेरी रचनायें पसंद आयेंगी |
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