Tuesday, June 9, 2009

असली गहना


उसका सिर हिलाना
और मुस्कराना
फिर धीरे धीरे मेरे पास आना
शरारतें करना
मुंह में हर चीज को देना
मेरे पास जाने से उसका भागना
ठुमक ठुमक घुटने टेकना
गीतों पर मस्ताना
उसका रोना और चिल्लाना
फिर ठहक ठहक कर हँसना
हर चीज के लिए मचलना
मौका मिलते ही दूसरो के बाल खींचना
कुछ भी खा लेना
पापा - दादा कहना
तमाम नखरे करना
और क्या क्या कलम से लिखना
मेरा बेटा है असली गहना


3 comments:

Neeraj Badhwar said...

बहुत खूब....जितना प्यारा बेटा...उतनी सुंदर अभिव्यक्ति

Naveen Tyagi said...

बहुत सुन्दर कविता है.

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब