Saturday, November 20, 2010

एक छोटी सी आश

 रेल रेल डब्बे डब्बे वो चाय बेचता जाये
अठन्नी और चबन्नी से वो मुस्काता जाये !!
घर पर बैठी बूढी माँ इसी आश में जिये
काश कि बस इतना ले आये
तनिक पेट भर सो जाये !!
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मेरी आवाज

4 comments:

आशीष मिश्रा said...

sunadar........

प्रवीण पाण्डेय said...

जीविकार्थ जूझते जीवन।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

..सुंदर।
..आगे और लिखिए..

शरद कोकास said...

अच्छा लगा यह शब्द चित्र