Monday, November 22, 2010

एक छोटी सी आश ...

बस हड्डियाँ ही दिखती हैं उस शरीर से  
बह रहा है नीर हर अंग से
सूरज भी जल रहा है तपन से 
प्याज भी निरीह है लपट के थपेड़ों से 
अनजान है कर्म और अर्थ के योग से
भाग्य भी असमर्थ है उसकी वेदना से
विक्षिप्त सा है अंतर्द्वंद की ज्वाला से
बस तन्मय हो !
तोड़ रहा है पत्थर दो वक्त की रोटी की आश से  !!

मेरी आवाज

8 comments:

मनोज कुमार said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति।

प्रवीण पाण्डेय said...

मार्मिक विधान, परिस्थितियों का।

Smart Indian said...

अति सुन्दर!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

दर्द की अभिव्यक्ति का अच्छा प्रयास।
..नीर-स्वेद?

Dinesh pareek said...

होली की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर और बहुत ही विचारनीय है | बस इश्वर से कामनाये है की app इसी तरह जीवन में आगे बढते रहे | http://dineshpareek19.blogspot.com/
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धन्यवाद
दिनेश पारीक

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