Thursday, November 18, 2010

सलाम !!

बहुत पहले लिखी गयी कविता के कुछ अंश आज लिखने का मन है -

इस्तकबाल करूँ में उसका

जो चिराग आंधी में झुलसा

फिर भी वह दमका ही दमका !

 

मेरी आवाज

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

दमदार पंक्तियाँ।