छोडा अपना देश बहुत सालो पहले
याद तो फिर भी आये मिटटी माँ मेरी
नहर गाँव की कैसे भूलें , कैसे भूलें खेतो को
मास्टर जी ने मुर्गा बनाकर खूब सिखाया गणित हमें
याद आते है बैल हमारे जिनकी जोड़ी शानदार थी
याद आते है सरसों और गेंहू के हर भरे खेत खलिहान
नही भूल सकते सब यादें जो हमारी पहचान है
झंडा बंधन हो या फिर बारातो की मस्ती हो
सरकारी विद्यालय की मस्ती हो या फिर कॉलेज की लड़किया
नही भूल सकते वो यादें , जो मेरे जेहन में है।
6 comments:
बहुत सुन्दर गीतात्मक वर्णन जी चुरा लिया आपने
---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है की आपके शब्दों को नई ऊर्जा, नई शक्ति और व्यापक अर्थ मिलें जिससे वे जन-साधारण के सरोकारों का सार्थक प्रतिबिम्बन कर सकें.
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.
Swagat aapka apne blog parivar mein.
(gandhivichar.blogspot.com)
बढ़िया आलेख बधाई
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना
इन सुंदर भावों से बस एक ही बात याद आई...देस पराया छोड़ के आजा...पंछी पिंजरा तोड़ के आजा...
शुक्रिया. बहुत पाक खयालात है आपके
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