Sunday, January 18, 2009

नाद - a kavita on 26th Jan

देख सभी को इस मन में है अति उत्साह समाया
कविता को अभिव्यक्ति का मेने माध्यम है बनाया
नेसडाक में जब हमने तिरंगा था लहराया
उन्नति का अस्वमेघ घोङा भारत ने विश्व घुमाया
हमने दे दी ललकार विश्व को , अर्थशक्ति बनने की
पर क्या हमने इस उत्सव पर सोचा झोपङ पट्टी का
क्या हमने सोचा कब हर घर में बिजली होगी
कब हुम रोकेंगे रिश्वत को जो बीमारी से बढकर है
क्या हमने देखा जाति धर्म के बटवारे को
मैं तो यही कहूंगा सबसे इस गणतंत्रा दिवस पर
देते है कुछ समय देश को छूते हैं अनछूये सवाल
हम उनको भी आगे लायें जिन पर टिकी इमारत है
कन्गूरों की असली सोभा होती अछी नींव से है
नींव बनेगी सुद्रढ, जरूरत है कुछ करने की
चलो आज लें प्रन कुछ अपने अन्तर्मेन की बातों का
करें नाद उन्नति के सही मायनों का

1 comment:

Shubhra Sood said...

very good & realistic poem