Tuesday, May 18, 2010

अंतर्द्वंद ...

ज्वार भाटे आते रहते हैं मेरे तट पर
विचार उद्वेलित होते रहते है मेरे मन पर
लोग आते रहते है मेरे ब्लॉग पर
जैसे चिड़ियों की चहचहाहट हो खेत पर
रहंट की कलकल ध्वनि हो कुएं पर
घंठो की करतल हो जैसे बाग़ के मंदिर पर
भजनों की धुन जैसे माता के द्वार पर


PS : इससे संबधित एक लेख अंतर्द्वंद - कुछ चीजें पसंद नहीं आ रहीं ?  मेरे ब्लॉग मेरी आवाज  पर पढ़ा  जा सकता है.  

1 comment:

अरुणेश मिश्र said...

सभी रिपोर्ताज प्रशंसनीय ।