Monday, May 24, 2010

संगीत

संगीत की धुन  ऐसी मधुर
नहीं चाहिए अब कोई विदुर
भाषा भी देखो हो गयी निगुण
मन को मोह लें  इसके ताल और सुर
इसको रचे कोई प्राणी चतुर
इसमें भरा है आनंद प्रचुर


मेरी आवाज

1 comment:

Ashish (Ashu) said...

वाह क्या रचना प्रस्तुत की आपने..सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध