Monday, June 14, 2010

बंजारिन

लौह कूटती बंजारिन
घर घर जाती बंजारिन
गाली देती बंजारिन
जीवन जीती बंजारिन

मंडल अध्यक्षा मिसरायिन
राजनीति में मिसरायिन
भाषण देती मिसरायिन
रोती रहती मिसरायिन

मेरी आवाज

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

त्‍यागी जी, बंजारे तो अपने फक्‍कडपन के लिए प्रसिद्ध है। बहुत ही सार्थक कविता, बधाई।

संजय भास्‍कर said...

त्‍यागी जी,
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
tareef ke liye..