Monday, June 7, 2010

एक कविता मूला की खुसी और AC पर ....


इधर AC का तापमान बढ घट रहा है
शरीर के आराम के हिसाब से सेट हो रहा है
उधर मूला झोंपड़ी में औंघा  बीजने को घुमा रहा है 
बीजने से कभी हवा का झोंका आ रहा है
तो कभी औंघे औंघे हाथ सो रहा है
बच्चा हैजे में पड़ा है
और बेटी मलेरिया से तप रही है
फिर भी नींद मुझसे अच्छी सोता है
अपनी उस अनोखी तपती  दुनिया में कभी कभी ही रोता है


मेरी आवाज

2 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

waah...!!
sach kaha aapne....jo sukh santosh mein hai wo mahatvkaansha mein nahi hai...
bahut acchi tulna rahi...
jeewan saari dunia ghoom fir kar wahi do rotiyon par aa kar ruk jaata hai...
bahut sundar..
aapka aabhaar..

संजय भास्‍कर said...

आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,